न हम रहे दिल लगाने के काबिल,
न दिल रहा ग़म उठाने के काबिल,
लगे उसकी यादों के जो ज़ख़्म दिल पर,
न छोड़ा उसने मुस्कुराने के काबिल।
न दिल रहा ग़म उठाने के काबिल,
लगे उसकी यादों के जो ज़ख़्म दिल पर,
न छोड़ा उसने मुस्कुराने के काबिल।
वो दिल ही नहीं रहे...
तू भी खामख्वाह बढ़ रही है ऐ धूप,
इस शहर में पिघलने वाले दिल ही नहीं रहे।
इस शहर में पिघलने वाले दिल ही नहीं रहे।
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